The winning entry has been announced in this pair.There were 3 entries submitted in this pair during the submission phase. The winning entry was determined based on finals round voting by peers.Competition in this pair is now closed. |
इंग्लैंड में सर्दियां बहुत कड़ाके की होती थीं। हम लोग, खासकर मेरे माता-पिता, कुश्ती देखकर समय बिताते। शनिवार अपराह्न में वे अपने ब्लैक एंड व्हाइट टेलीविजन पर जो कुश्तियां देखते, उससे मानो उनके अन्यथा एकरस जीवन में थोड़ी देर के लिए रस आ जाता। उनके काम पर पहनने की पोशाकों का रंग उतरा होता। सोफा कवर भी, जिन्हें वर्षों से बदला नहीं गया था, उतरे हुए रंग के होते, और इसी तरह इंग्लैंड आने से पहले वे जिस समाज में रहे थे उसके बारे में भी उनकी स्मृति धुंधली पड़ती जा रही थी। मेरे माता-पिता और उनकी पूरी पीढ़ी ने अपने जीवन के सबसे उपयोगी वर्ष तुच्छ वेतन पर फैक्टरियों में एक ही काम पर कड़ी मेहनत करते हुए खर्च कर दिए। एक ऐसे जीवन में, जिसमें थे नीरस व थकाऊ काम, मुड़ी हुई रीढ़ें, लंबे समय चलने वाली जोड़ों के दर्द की बीमारी और कटे हाथ। वे अपने होठ काटकर दर्द को भीतर जज़्ब कर लेते। उनके पास ऐसा करने के सिवाए कोई चारा भी न था। मन ही मन वे इन सबसे मुंह मोड़ने की कोशिश करते - सहकर्मियों द्वारा अनादर पर ध्यान न देने की, फोरमैन की निरंतर कुड़कुड़ पर गुस्सा न दिखाने, और, इंडियन महिलाओं के मामले में, जब उनके पति उन्हें थप्पड़ मारते तो विक्षुप्त न होने की। वे अपने आप को समझाते, दर्द को भीतर समा लो, दर्द से निपटना सीखो - बांहों में चढ़ता दर्द हो या नितंबों के घिसे जोड़ों का दर्द। वर्षों तक सिलाई मशीनों पर झुके रहने के कारण पड़ने वाले पीठदर्द के दौरे हों, चाहे निरंतर हाथ से कपड़े धोने के कारण पत्थर बन चुकी उंगलियों की गांठों में उठने वाला दर्द, या फिर अपने पतियों की पुरानी अंडरपैंट से रसोई के फर्स घिस-घिस कर गठियाग्रस्त हो चुके घुटनों का दर्द हो। जब मेरे माता-पिता शनिवार अपराह्न को हाथ में दूध और इलायची वाली चाय लेकर कुश्ती देखने बैठते, तो उन्हें मनोरंजन की चाहत होती। वे थोड़ा हंसना चाहते। लेकिन उनकी यह भी इच्छा होती कि नेक व्यक्ति, बस एक बार ही सही, गंदे व्यक्ति पर जीत दर्ज कर ले। वे चाहते कि उस अकड़कर चलते, चिंघाड़ते दबंग व्यक्ति की किस्मत धोखा दे जाए और उसे उसका ज़ायज़ दंड मिल जाए। वे तब नेक व्यक्ति द्वारा हार न मान लेने के लिए प्रार्थना करते, जब वह किरमिच पर पड़ा होता, आपस में हाथों की उंगलियां गुंथी स्थिति में फंसा होता या पीड़ा में अपने गुर्दे भींच रहा होता। वे प्रार्थना करते कि काश! यह व्यक्ति थोड़ी देर और टिक जाता, दर्द को सहन कर लेता और किसी तरह यह दौर निकाल लेता। यदि वह इतना कर लेता, तो इस बात के बावजूद कि कुश्ती तो कुश्ती है, उसकी जीत की आशा बंध जाती। लेकिन, यह जीत कोई जीत न होती। जीतने वाला पूरी तरह थका हुआ दिखाई देता और मुश्किल से दर्शकों का अभिवादन करने के लिए हाथ हिलाने की हालत में होता। जीत का मतलब तो मुख्यतः जिंदा बच जाना होता। | Entry #5924 Winner
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इग्लैंड की सर्दियाँ ठिठुराने वाली होती हैं। हमने, खासतौर पर मेरे माता-पिता ने ये सर्दियाँ कुश्तियां देखते हुए गुजारीं। शनिवार की शामों को अपने ब्लैक एंड व्हाइट टेलीविजन पर कुश्तियां देखने से उनकी नीरस जिंदगियों मे जैसे रौनक आ गईं और रंग भर गए। काम के दौरान पहने जाने वाले उनके लबादे बदरंग हो गए थे, वर्षों से न बदले गए सोफे के कवर धुँधला गए थे, इग्लैंड आने से पहले जिन लोगों के साथ उन्होंने वक्त गुजारा था, उनकी स्मृतियां भी अब धुँधलाने लगीं थीं। मेरे माता-पिता और उनकी पूरी पीढ़ी ने अपने जीवन के सर्वोत्तम साल घटिया-से वेतन के लिए कारखानों में काम करते हुए खपा दिए थे। बदले में मिला क्या- झुकी कमर, असाध्य गठिया और कटे-फटे हाथों वाली नीरस जिंदगी। अपने होंठों को चबाते हुए वे चुपचाप दर्द बर्दाश्त करते रहे। उनके पास इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं था। अपनी तरफ से उन्होंने अपने साथी कामगारों की हालत की अनदेखी करने, फोरमैन की कपट भरी बकबक के खिलाफ अपना संयम बनाए रखने और भारतीय महिलाओं के मामले में, उनके पतियों द्वारा उनकी पिटाई करने पर होने वाली चिड़चिड़ाहट से बचने की भरसक कोशिश की। चुपचाप दर्द सहते हुए उन्होंने खुद से कहा-दर्द से निपटना सीखो-चाहे वह हाथों में बढ़ती हुई तकलीफ हो, कूल्हे के कमजोर होते जोड़ हों, सालों साल मशीन पर झुके रहने के कारण कमर की ऐंठन हो, हाथ से कपड़े धोने से हाथों के फटे पोर हों या फिर अपने शौहरों द्वारा इस्तेमाल की गई निक्कर चढ़ाकर रसोई का फर्श रगड़कर साफ करते-करते गठिया गए घुटनों का दर्द हो। जब मेरे माता-पिता शनिवार की शामों को हाथों में इलायची वाली दूधिया चाय थामे कुश्ती देखने के लिए बैठते तो वे चाहते थे मनोरंजन, उनकी चाहत थी सिर्फ एक मुस्कान। लेकिन वे यह भी चाहते थे कि सिर्फ एक बार ही सही, मगर अच्छा आदमी खलनायक से जीते। वे चाहते थे कि किसी तरह पूरा जोर लगाकर, अपना दमखम दिखाकर वह हावी हो जाए। उन्होंने उस अच्छे व्यक्ति के लिए दुआएं कीं जो दोनों हाथों की अंगुलियां फँसा कर बनाए गए शिकंजे में फँसा हुआ या दर्द से अपने गुर्दों को पकड़े हुए पर आत्मसमर्पण न करने की मुद्रा में गद्दे पर पड़ा हुआ था। काश, वह बस थोड़ी और देर तक मुकाबला कर पाए, दर्द को बर्दाश्त कर ले, उस हालत में भी टिका रहे। काश, वह ये सब कर पाए तो उम्मीद थी कि वह जीत जाता, अरे कुश्ती इसी का तो नाम है। लेकिन यह सिर्फ एक हल्की-फुल्की जीत होती। आप जरा विजेता को देखिए, इतना थका-हारा होता है कि उसमें जनता की तरफ हाथ हिलाने भर का दम भी नहीं रह जाता। यह तो बस अस्तित्व बनाए रखने वाली जीत थी। | Entry #5935
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इंग्लैंड में सर्दियाँ ठंडी हुआ करती थीं। हम, और ख़ास तौर से हमारे माता-पिता, कुश्ती देखते हुए सर्दियाँ बिताते थे। जो कुश्ती वे अपने श्वेत-श्याम टेलीविज़न सेट पर शनिवार की दोपहर को देखा करते थे, वह उनकी ज़िंदगी में कुछ जीवंतता और रंग ले आती थी, जो वैसे बहुत बेरंग थी। उनका काम कुल मिलाकर धुँधला गया था, सोफ़े का कवर – जो सालों से बदला नहीं गया था - धुँधला हो चुका था, उनकी इंग्लैंड आने से पहले लोगों की जो यादगारें थीं वे भी धुँधली हो चुकी थीं। मेरे माता-पिता, बल्कि उनकी समूची पीढ़ी ने अपनी ज़िंदगी के सबसे अच्छे साल थोड़ी सी तनख़्वाह के लिए फ़ैक्टरियों में पिसते हुए गँवा दिए। मेहनत की ज़िंदगी, बिगड़ी हुई रीढ़ की हड्डियाँ, पुराना गठिया, या कटे हुए हाथ। उन्होंने अपने होंठ चबा लिए और दर्द पी गए। उनके पास कोई और चारा भी नहीं था। उन्होंने अपने दिमाग़ को बंद कर लेने की कोशिश की – अपने साथ काम करने वालों की बेइज़्ज़ती को नज़रअंदाज़ करना, फ़ोरमैन की हमेशा चलने वाली चखचख को बर्दाश्त करना, और यदि हिंदुस्तानी औरत हो तो अपने पतियों द्वारा थपड़ियाए जाने पर परेशान न होना। दर्द को बर्दाश्त करो, उन्होंने खुद से कहा था, दर्द को संभालो – बाजुओं में उठते हुए दर्द को, बहुत सारे सालों तक सिलाई मशीनों पर झुके रहने के कारण कमर की जकड़न को, हाथों से कपड़े धोने के कारण खुरदुरे पोरों को, और अपने पति के पुराने कच्छे से रसोई के फ़र्श को रगड़ने की वजह से घुटनों के गठिया को। जब मेरे माता-पिता शनिवार की दोपहर को दूध और इलायची की चाय का कप हाथ में लेकर कुश्ती देखने के लिए बैठते थे, तो वे चाहते थे कि उनका मनोरंजन हो, वे हँसना चाहते थे। साथ ही वे यह भी चाहते थे कि अच्छा आदमी, बस एक बार, ख़राब आदमी से जीत जाए। वे चाहते थे कि नकचढ़े, धकियाने वाले कठोर आदमी को उसका दंड मिले। वे तस्वीर में लेटे हुए, दोहरी-उँगली के जाल में फँसे हुए या दर्द के कारण अपनी किडनी को पकड़े हुए, अच्छे आदमी के लिए प्रार्थना करते थे कि वह हार न माने। बस यदि वह थोड़ी देर और टिका रहे, दर्द को बर्दाश्त कर ले, और संघर्ष को पूरा कर ले। यदि वह बस ये चीज़ें कर ले, तो इस बात के मौक़े थे कि कुश्ती वह हो जाएगी जो होनी चाहिए, कि वह जीत जाएगा। हालाँकि वह केवल योग्य होने की जीत होती। आप विजेता को देखेंगे, पस्त हाल, भीड़ की ओर मुश्किल से हाथ हिलाता हुआ। जीत मूल रूप से एक तरह का बचा रहना ही तो था। | Entry #4864
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